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सम्पादकीय Jwala
Home›सम्पादकीय Jwala›उत्तर प्रदेश सरकार का शिक्षा व्यवस्था लिए एक बड़ा कदम

उत्तर प्रदेश सरकार का शिक्षा व्यवस्था लिए एक बड़ा कदम

By vivekjwala
June 30, 2017
1869
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उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और पारदर्शिता के लिए एक बड़ा कदम उठाने का निश्चय किया है। उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में शिक्षा को एक व्यवसाय बना दिया गया है। सरकारी महाविद्यालयों, इंटर कालेजों से कहीं आगे निजी महाविद्यालय ;डिग्री कालेजद्ध और इंटर मीडिएट विद्यालय बढ़ गये हैं। आईआईटी, मेडिकल कालेज और प्रबंधन संस्थान अपनी गरिमा बनाए हुए हैं लेकिन वहां भी अनियमितताओं की शिकायतें आने लगी हैं। इसीलिए शिक्षा के तीन महत्वपूर्ण कड़ियों-विद्यार्थी, शिक्षक और विद्यालय की समीक्षा समय≤ पर करना जरूरी हो जाता है। दुर्भाग्य से यह समीक्षा ईमानदारी से नहीं हो पाती और राजनीतिक दुर्भावना स्पष्ट दिखाई पड़ने लगती है। इसका नतीजा यह होता है कि महाविद्यालयों में शिक्षा की जगह प्रबंधन और शिक्षकों में अदालती लड़ाई चलती रहती है और जब किसी टाॅपर के बारे में हकीकत पता चलती है तो उसे जेल जाना पड़ता है। उत्तर प्रदेश की सरकार अपने दोनों शिक्षा आयोग भंग करने की तैयारी कर रही है लेकिन इनकी जगह पर जो नयी संस्था बनायी जाएगी, उसकी शत-प्रतिशत ईमानदारी की गारंटी कौन लेगा?अगर नयी बोतल में पुरानी शराब की परम्परा ही चलानी है तो प्रदेश की शिक्षा में कोई बदलाव लाने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा का प्रभार देखने वाले श्री दिनेश शर्मा को यह बात ध्यान में रखनी होगी।

शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को सीखने, ज्ञान प्राप्त करने, मूल्यों और संस्कारों को ग्रहण करने का बेहतर अवसर देती है। सरकारी, गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं के साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ ओपेन स्कूलिंग (एनआईओएसी) उन बच्चों को भी शिक्षा का अवसर देता है जो किसी कारण से वंचित रह गये। इन शिक्षा संस्थाओं को केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर से नियंत्रित किया जाता है तथा धन की भी व्यवस्था की जाती है। केन्द्र में मौजूदा मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 99100 करोड़ का शिक्षा के लिए बजट भी तैयार कर रखा है। केन्द्र और ज्यादातर राज्यों ने अपने यहां 10$2$3 की प(ति को शिक्षा के लिए लागू कर रखा है। इसके तहत 10 वर्ष की स्कूल शिक्षा, दो वर्ष की जूनियर कालेज और तीन वर्ष की डिग्री स्तर की शिक्षा होती है। सबसे ज्यादा भीड़ माध्यमिक शिक्षा में होती है। नेशनल काउंसिल आॅफ एजूकेशनल रिसर्च (एनसीईआरटी) जिसका कार्यालय देश की राजधानी दिल्ली में है, उसे स्वायत्त संस्था का रूप दिया गया है और यही पाठ्यक्रम निर्धारित करती है दूसरी तरफ शिक्षकों की भर्ती का महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके लिए बोर्ड बनाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग बने हुए हैं। तीसरा महत्वपूर्ण हिस्सा विद्यालयों का होता है। निजी संस्थाओं ने इस मामले में तो कोई कसर ही बाकी नहीं रखी है। शानदार बिल्डिंग देखकर महंगी फीस वसूलने में आसानी रहती है। सरकारी स्कूलों में भी भवन निर्माण और वहां जरूरी सुविधाएं जैसे स्वच्छ शौचालय, पीने के पानी और पुस्तकालय आदि की समुचित व्यवस्था की जा रही है।

इन तीनों अंगों में सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक हैं क्योंकि हमारा देश और हमारी संस्कृति इस बात की गवाह है यहां आश्रमों में पेड़ों के नीचे उच्च स्तर की शिक्षा दी गयी है। इसका सारा श्रेय शिक्षकों को जाता है। कुछ शिक्षक इस बात पर नाराज हो सकते हैं कि हमें ऋषि-मुनियों की तरह रहने की नसीहत दी जा रही है लेकिन हमारा तात्पर्य शिक्षकों की विद्वता से है जो किसी बिल्डिंग और पैसे की मोहताज नहीं होती। आज की साठेत्तर पीढ़ी में कितने ही ऐसे लोग हैं जो टूटे-फूटे स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करके आए हैं और आज भी अपने विद्वान शिक्षकों को याद किये हुए हैं। शिक्षकों की गुणवत्ता में कमी के लिए ये शिक्षा आयोग ही जिम्मेदार हैं। उत्तर प्रदेश में सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक, प्रवक्ता और प्रधानाचार्यों की नियुक्ति 1982 में गठित चयन बोर्ड के माध्यम से होती है जबकि सहायता प्राप्त स्नातक एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में प्रवक्ता और प्राचार्यों की नियुक्ति उससे पूर्व 1980 में गठित उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के माध्यम से होती रही है।

पहले की अपेक्षा संस्थाओं का उद्देश्य बदल गया है। पहले लोग सामाजिक सेवा की भावना से शिक्षा संस्थाएं स्थापित करते थे और उनका यही उद्देश्य होता था कि बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा मिले। जाहिर है, इसके लिए वे योग्य से योग्यतर शिक्षकों की तैनाती करते थे। अब शिक्षा संस्थानों का उद्देश्य धन कमाना हो गया है। स्कूल-कालेजों के प्रबंधक शिक्षकों की योग्यता नहीं, ऐसी कुशलता देखते हैं जिससे विद्यालय ब्रांड बन जाए और ज्यादा से ज्यादा छात्र-छात्राएं वहां बड़ी फीस देकर प्रवेश लें। इन्हें शिक्षा माफिया कहना भी अनुचित नहीं होगा। इन्हीं शिक्षा माफियाओं ने शिक्षा सेवा आयोग पर भी कब्जा कर लिया है और पूर्ववर्ती सरकारें सत्ता में बने रहने के लिए ऐसे लोगों की मदद करती रहती हैं। अब पता चला है कि प्रदेश सरकार दोनों आयोगों को भंग करके एक अधिनियम के जरिए नया आयोग बनाएगी। यह भी कहा जा रहा है कि नये आयोग में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवा को संरक्षित रखा जाएगा। दोनों चयन बोर्डों की संपत्ति, परिसम्पत्ति आदि भी प्रस्तावित चयन आयोग को सौंप दी जाएगी। इस प्रकार नयी बोतल में पुरानी शराब भरने की आशंका पैदा होना स्वाभाविक है। प्रदेश की भाजपा सरकार जिन दो भर्ती संस्थाओं को भंग करने पर विचार कर रही है, उनमें अध्यक्ष और सदस्यों की भर्ती में अनियमितता का आरोप लग चुका है। माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में प्रधानाचार्य और शिक्षकों की भर्ती करता है।

Tagsउत्तर प्रदेशशिक्षा व्यवस्था
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