संविधान की मर्यादा लांघती राजनीति

विवेक ज्वाला ब्यूरो। राजनीति दलगत रूप से जिस तरह मर्यादाओं की सीमाएं तोड़ चुकी हैं और व्यक्तिगत आक्षेप करने में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है, उसी तरह राजनीति अब संविधान की मर्यादा को भी तोड़ने लगी है। संविधान ने चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई) आदि कुछ संस्थाएं ऐसी बनायी हैं जिन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार मिला हुआ है। इसी तरह हमारे देश की सेना है जो विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक निर्वहन करती है। बर्फ के पहाड़ों में कई बार उनकी जीवित समाधि बन जाती है और ऐसे शहीदों के प्रति भी सम्मान की जगह अगर तिरस्कार के शब्द किसी नेता के मुंह से निकलते हैं तो सिर्फ उसके माफी मांग लेने से उसका अपराध कम नहीं हो जाता। हाल ही कुछ ऐसी ही घटनाओं ने इस देश की जनता को आहत किया है। चुनाव आयोग पर जहां भेदभाव करने का आरोप लगाया गया तो कांग्रेस के एक नेता ने हमारे सेना प्रमुख को सड़क छाप गुण्डा कह दिया। हमारा देश लोकतांत्रिक देश है और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है।
लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी चुनाव होते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग की व्यवस्था संविधान के तहत की गयी है। संविधान की धारा 324 में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग संसद और राज्य विधानसभाओं में निर्वाचन तथा राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के निर्वाचन कराएगा तथा इन निर्वाचनों से संबंधित सभी विषयों की देखरेख करेगा। इस प्रकार चुनाव करवाने के लिए जहां निर्वाचन आयोग को दायित्व सौंपा गया, वहीं उसे यह अधिकार भी मिला है कि उस पर कोई भी दबाव नहीं डाल सकता। निर्वाचन आयोग अपने इन अधिकारों और दायित्वों का निर्वहन अच्छी प्रकार से कर भी रहा है। चुनाव प्रक्रिया में एक नया बदलाव आया है और पहले जहां मतपेटी में मुहर लगाकर वोट डाले जाते थे, अब उनकी जगह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में बटन दबाकर मताधिकार का प्रयोग होता है। इससे चुनाव प्रक्रिया बहुत सरल हो गयी तथा मतदान पेटी में जहां गुण्डागर्दी से फर्जी वोट डाले जाते थे अथवा मतपेटी ही बदल दी जाती थी, उसकी जगह ईवीएम में किसी प्रकार की गड़बड़ी करने की गुंजाइश नहीं रह गयी। राजनीति ने फिर भी गुंजाइश निकाल ली। कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम को लेकर गंभीर आरोप लगाए और आम आदमी पार्टी ने तो दिल्ली विधानसभा में ईवीएम जैसी ही एक मशीन में हेरफेर करके दिखाया कि किस तरह एक ही पार्टी को वोट डलवाए जा सकते हैं। चुनाव आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लिया और अभी हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिन राजनीतिक दलों ने प्रतिभाग किया था उनके दो-दो प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया कि वे ईवीएम में पासवर्ड डाल कर दिखाएं कि किस तरह वोटों की गड़बड़ी की जा सकती है। अफसोस यह कि कोई भी राजनीतिक दल यह साहस नहीं दिखा सका।
यह आरोप जरूर लगाया कि चुनाव आयोग ने ऐसी शर्तें रखी हैं जिससे सच्चाई को सामने नहीं लाया जा सकता। इसका सीधा अर्थ है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर कुछ राजनीतिक दलों को भरोसा नहीं। इसीलिए अब चुनाव आयोग ने सरकार से उसके अस्तित्व को बचाने का अनुरोध किया है। आयोग ने सरकार से यह अधिकार मांगा है कि सुप्रीम कोर्ट और दूसरे न्यायालयों की तर्ज पर उसके पास भी यह अधिकार होना चाहिए कि झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ अवमानना का मुकदमा दर्ज कराया जा सके। चुनाव अयोग ने इस प्रकार की चिट्ठी करीब डेढ़ महीने पहले ही कानून मंत्रालय को भेजी है। इस चिट्ठी में आयोग को यह अधिकार देने की मांग की गयी है कि अगर उसके खिलाफ पक्षपात करने जैसी अपमानजनक टिप्पणियां हों तो उसे भी अवमानना की नोटिस जारी करने और कार्रवाई करने का अधिकार मिले। मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी ने केन्द्र सरकार से यह मांग की है तो इस पर गंभीरता से विचार भी होना चाहिए। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इसी साल जनवरी और फरवरी में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम पर उठे शक और सवालों के बीच आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाया। बसपा जैसी पार्टी ने फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की तो कांग्रेस तो अदालत ही चली गयी। सबसे आगे केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पहुंच गयी और उसने सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव आयोग की पूरी दुनिया में बेइज्जती करायी। चुनाव आयोग का अपमान होता रहे और वो खामोश रहने को मजबूर हो, ऐसा नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार सेना के मामले में भी राजनीति को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में सेना और अर्द्धसेना को कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, यह किसी से छिपा नहीं रह गया। छोटे-छोटे बच्चे उन्हें पत्थर मारते हैं तो कुछ सिरफिरे थप्पड़ तक मार देते हैं। सैनिक उनको मुंहतोड़ जवाब दे सकते थे लेकिन वे इस देश के समझदार पहरेदार हैं इसका मतलब यह भी नहीं कि राजनीति भी उनका अपमान करने लगे। कांगे्रस के पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने आर्मी चीफ विपिन रावत को सड़क छाप गुण्डा कह दिया। बाद में उन्होंने अपने इस बयान पर माफी मांगी लेकिन इससे उनका अपराध कम नहीं हो जाता है। कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित पाकिस्तान की सेना की निंदा कर रहे थे अथवा उसका बचाव कर रहे थे, यह भी स्पष्ट नहीं होता। भारतीय सैनिकों के सिर काट कर मानवता का अपमान करने वाले और अकारण सीमा पर गोलियां चलाकर निर्दोष नागरिकों को घायल करने वाले पाकिस्तानी सैनिक किसी भी प्रकार की हमदर्दी के हकदार नहीं हैं। संदीप दीक्षित उनकी बेचारगी का बखान कर रहे थे जैसे नादान बच्चों के बारे में कहा जाता है कि उनको समझ नहीं। पाकिस्तान के सेना प्रमुख राजनीतिकों की तरह बयान देते हैं तो संदीप दीक्षित ने कहा कि पाकिस्तान सेना प्रमुख ऐसे बयान दें तो उनकी तो फौज में क्या रखा है साहब, वो तो एक माफिया टाइप के लोग है
लेकिन हमारे सेनाध्यक्ष भी इस तरह के बयान क्यों देते हैं। वो मुझे लगता है हमारे में सभ्यता है, सौम्यता है, गहराई है, ताकत है। हमारा देश दुनिया के देशो में एक आदर्श देश बनके सामने निकलता है अगर हम भी फिर इस तरह की हरकतें करें और बयानबाजी दें तो खराब तब लगता है जब हमारे भी थलसेनाध्यक्ष एक सड़क के गुण्डे की तरह बयान देते हैं। संदीप दीक्षित ने बाद मे अपनी गलती महसूस की और कहा कि मैं वास्तव में एहसास करता हूं कि जो मैंने कहा वह गलत था, इसलिए मैं माफी मांगता हूं और बयान वापस लेता हूं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने संदीप दीक्षित की गलती को गंभीरता से लिया, यह अच्छी बात है। राहुल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने आर्मी चीफ को लेकर बयान दिया है, वो बिल्कुल गलत है। उन्होंने कहा कि सेना देश की सुरक्षा का काम कर रही है और सेनाध्यक्ष के खिलाफ किसी को भी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। ऐसी स्थितियों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।
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