आप तो इस शहर से वाकिफ़ हैं(ग़ज़ल)

आप तो इस शहर से वाकिफ़ हैं,आपने ये हलफ उठाया होता
सूरज जो सोया है यहाँ वर्षों से,उसको भी कभी जगाया होता
आप बाँटते रहे नफरतों की आयतें शहर की दरों-दीवार पर
गलती से ही सही कभी तो प्यार का तराना भी गुनगुनाया होता
वीरान गली,वीरान मकाँ, वीरान वक़्त और ये वीरान जहाँ सारा
अपनी सदाओं को इन खेत,इन खलिहानों को ही सुनाया होता
तुम्हारी जगह आज खिलौनों ने ले ली है,अजीब रिवाज़ है यहाँ
न होती ये हालत अगर तुमने बच्चों को नींद में थपकाया होता
भूख,चैन,सुख,लालसा,जवानी सब खो दिया इस शहर में आके
काश कि कोई मुझे भी मेरी माँ की तरह आके थोड़ा मनाया होता
आज तुम्हारा घर जला तो शहर में तुम्हें खौफ का इल्म हुआ है
क्यों होता हादसा गर तुमने पहले ही जलते घर को बचाया होता
सलिल सरोज















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