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Home›देश›भगवा भारत का व्यक्तित्व है

भगवा भारत का व्यक्तित्व है

By vivekjwala
June 26, 2017
1942
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भारत प्रकाश अभीप्सु राष्ट्रीयता है। प्रकाश हमारी सनातन प्यास है। हमारे प्राणों में गहरी प्यास है प्रकाश की। प्रकृति का सर्वोत्तम प्रकाशरूपा है भी। अष्टावक्र ने जनक को उस परम को “ज्योर्तिएकं” बताया था। परमाणु विस्फोट के आविष्कर्ता वैज्ञानिक ने अपने सफल प्रयोग के बाद कहा था “रेडियंस आॅफ थाऊजैन्डस सन्स” – उसने हजारों सूर्यो का प्रकाश एक साथ देखा था। गीता ;अध्याय 11 श्लोक 12द्ध में “दिवि सूर्य सहस्त्रस्य” की यही बात पहले ही कही जा चुकी है। भारतीय अनुभूति के देवता दिव्यता के धारक हैं। दिव्यता प्रकाश है। अंग्रेजी का डिवाइन हमारी भाषाओं का दिव्य है और अंग्रेजी की डिवाइनटी हमारी अनुभूति की दिव्यता है। अंग्रेजी डिवाइन और डिवाइनिटी भारतीय दिव्यता की उधारी हो सकते हैं। वैदिक )षि इसीलिए ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की स्तुतियां करते थे।

हम सबको प्रकाश चाहिए। प्रकाश ज्योति है, ज्योति प्रकाश है। प्रकाश रंगहीन दिखाई पड़ता है लेकिन अपने अन्तस् में सात रंगधारण करता है। बादलों को पार कर हमारी ओर आती प्रकाश किरणें जब तब 7 रंगों में बिखर जाती है। हम भारतीय उसे इन्द्रधनुष कहते हैं।भारत प्रकाश अभीप्सु राष्ट्रीयता है। प्रकाश हमारी सनातन प्यास है। हमारे प्राणों में गहरी प्यास है प्रकाश की। प्रकृति का सर्वोत्तम प्रकाशरूपा है भी। अष्टावक्र ने जनक को उस परम को “ज्योर्तिएकं” बताया था। परमाणु विस्फोट के आविष्कर्ता वैज्ञानिक ने अपने सफल प्रयोग के बाद कहा था “रेडियंस आॅफ थाऊजैन्डस सन्स” – उसने हजारों सूर्यो का प्रकाश एक साथ देखा था। गीता ;अध्याय 11 श्लोक 12द्ध में “दिवि सूर्य सहस्त्रस्य” की यही बात पहले ही कही जा चुकी है। भारतीय अनुभूति के देवता दिव्यता के धारक हैं। दिव्यता प्रकाश है। अंग्रेजी का डिवाइन हमारी भाषाओं का दिव्य है और अंग्रेजी की डिवाइनटी हमारी अनुभूति की दिव्यता है। अंग्रेजी डिवाइन और डिवाइनिटी भारतीय दिव्यता की उधारी हो सकते हैं। वैदिक )षि इसीलिए ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ की स्तुतियां करते थे। हम सबको प्रकाश चाहिए। प्रकाश ज्योति है, ज्योति प्रकाश है। प्रकाश रंगहीन दिखाई पड़ता है लेकिन अपने अन्तस् में सात रंगधारण करता है। बादलों को पार कर हमारी ओर आती प्रकाश किरणें जब तब 7 रंगों में बिखर जाती है। हम भारतीय उसे इन्द्रधनुष कहते हैं। प्रिज्म जैसे वैज्ञानिक उपकरणांे से भी प्रकाश के 7 रंग देखे जाते हैं। रंग चाक्षुस हैं। रंग सुने नहीं जा सकते, इनका स्वाद भी असंभव। रंगो का पाउडर अलग बात है। रंग पदार्थ नहीं होता। प्रकाश और हमारी आंखो से उसका उद्भव है। हम सब बहुधा ‘अंतरंग’ शब्द प्रयोग करते हैं लेकिन अंतरंग देखा नहीं जा सकता। अन्तरंग अनुभूति का विषय है। हम अपने प्रिय जनों को अंतरंग मित्र कहते हैं लेकिन अंतरंग देखा नहीं जा सकता। संभवतः वह रंग का अंत हो सकता है। अंतरंग दरअसल हमारे भीतर का भाव है। उसे अन्तर्भाव भी कह सकते हैं लेकिन अंतरंग ज्यादा चलताऊ है। रंगों का विज्ञान जटिल हो सकता है। मूलतः यह प्रकाश विज्ञान आपटिक्स का विषय है। आपटिक्स अभी अधूरा है।

हम प्रकाश में सात रंग ही देख पाते हैं। इनमें से कुछेक को मिलाकर नए शेड्स या छवि पा लेते हैं, लेकिन रंगों के भी अपने प्रभाव हैं। काला रंग प्रकाश किरणों को सोखता है। काले रंग के छाते या काले रंग का चश्मा इसीलिए चलन में आया। समुद्र के किनारे लाल हरी नीली छतरी के नीचे बैठकर बदन दिखाने का प्रकाश विकिरण के विज्ञान से कोई लेना देना नहीं है। प्रकाश विज्ञान में ‘ब्लैक बाडी रेडिएशन’ का विस्तार से वर्णन है। हमारी माताएं बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए काला टीका लगाती थीं। हरेक रंग के अपने प्रभाव हैं। हम सब देर तक लालरंग नहीं देख सकते। लेकिन नीला रंग सुख देता है और हरा भी। हरा रंग के शोभन होने के कारण ही हम ‘हरा भरा’ देखने के भूखे हैं। प्रकाश के अंतःकरण में उपस्थित सातों रंग अस्तित्व के उपहार है। संसार बोध में 7 का महत्व है। 7 रंग हैं तो सात सुर भी। सा रे ग म प ध और नि हम सबने सुना ही है। यहां स षड़ज है, रे )षभ् है, ग गांधार है म मध्यम है प और ध धैवत है। राग और सुर सुने जाते हैं, देखे नहीं जा सकते। अभिनय देखा जाता है, इसीलिए रंगकर्म कहलाता है और अभिनय के स्थान को रंगशाला कहते हैं। रंग मुक्त नहीं करते, बांधते हैं। रंग हमारी आसक्ति हैं। विवाह के समय वर सातों रंग की चर्चा करता है। अग्नि के 7 चक्कर लगाता है। वह बंधता है, बांधता है। संसार रंगशाला है। यहां रंग ही रंग हैं। रस प्रिय रंग रसिया कहे जाते हैं। सबके अपने रंग हैं। अपने रंग पर ही ज्यादा जोर देने वाले रंगबाज कहे जाते हैं लेकिन काला रंग भी आग्रही है। सूरदास गा गये हैं कि “काली कामरि चढ़ै न दूजो रंग।” मूलभूत प्रश्न है कि क्या रंग भरे इस संसार में सतत् कर्म करते हुए बंधन मुक्ति का भी कोई रंग हो सकता है?सूर्य प्रतिदिन उगते हैं। दिन भर श्रम करते हैं। हम पृथ्वीवासी उनका परिवार हैं। वे हमारी कुशलता के लिए प्रकाश देते हैं लेकिन प्रातः उगने के पहले वे क्षितिज को अरूण तरूण करते हैं। क्या नाम दें इस रंग का?वे सांझ समय अस्त होते हुए भी आकाश को उसी रंग से भरते हैं?यह रंग सात रंगों से अलग है। अग्नि जलती है, लपट ऊपर जाती है। अग्निशिखा का रंग भी इन सात रंगों से भिन्न होता है। बिल्कुल वैसा ही जैसा सूर्याेदय काल का। यह रंग मुक्तिवाची है। सतत् कर्म, अभ्युदय और निःश्रेयस। यह रंग अनूठा है। भारत ने इसे भगवा कहा है। यह रंग भारत को प्रिय है। भारत के प्राणों में रचा बसा है भगवा। भगवा वर्तमान राजनीति का चर्चित शब्द है।

एक वर्ग के राजनीतिज्ञ राष्ट्रवादी राजनीति पर भगवाकरण का आरोप लगाते हैं लेकिन अर्थ स्पष्ट नहीं करते। आखिरकार भगवा का अर्थ है क्या?भग का साधारण अर्थ है – दाता, देने वाला। ऋग्वेद में भग सम्पूर्ण समृ(ि और ऐश्वर्य के देवता हैं। वे 12 आदित्यों में से एक हैं। वरूण देव के साथ उनका उल्लेख है। वरूण अत्यंत शक्तिशाली देव है। वरूण प्राकृतिक नियमों का पालन कराते हैं। डाॅ0 राधाकृष्णन के अनुसार वे ईश्वर जैसे हैं। वैदिक ‘निरूक्त’ (12.13) के अनुसार यास्क ने भग को सूर्य का वह रूप बताया है जो प्रातः से पूर्वान्ह तक प्रकाश देता है। वैदिक साहित्य में ऊषा भग की बहन है। इसी भग से विकसित हुआ भगवा रंग। भगवा त्याग, प्रकाश, ज्ञान और मुक्त जिज्ञासा का प्रतीक है। भारत के लोगों ने इस रंग को अभूतपूर्व प्यार दिया है। भगवा रंग संन्यासी प्रिय भी है। इस संसार के राग द्वेष में होते हुए भी जो मुक्त रहने का प्रयास करते हैं वे संन्यासी हैं। संन्यास की अनेक विधियां हैं। योग, भक्ति और ज्ञान की तमाम धाराएं हैं लेकिन भगवा सबका प्यारा है। भगवा वस्त्रधारी को देखकर भारतीय चित्त में स्वाभाविक ही आदर पैदा होता है।भग संपूर्ण ऐश्वर्य है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ऐश्वर्य। इस ऐश्वर्य का रंग वर्ण भगवा है और भग के सम्पूर्ण ऐश्वर्य का धारक भगवान है। भगवान संपूर्णता में विद्यमान संपूर्ण धर्म का धारक हैं और लोकसंग्रह से प्राप्त संपूर्ण यश का भी स्वामी है। यह सत्य है लेकिन प्रकृति के परम सौन्दर्य को धारण करता है, अभिव्यक्त भी करता है। यह सत्य है, शिव और सुंदर भी है। यही संपूर्ण ज्ञान है, ज्ञाता है। ज्ञाता का विषय है। ज्ञान का लक्ष्य है। ज्ञान की सर्वोत्तम उपलब्धि भी है।

समस्त सार और असार इसके भीतर हैं। भक्त का चरम भगवान है उसकी प्रीति भगवा है। भक्त या ज्ञाता के भगवान हो जाने की संभावना है। इसी संभावना का नाम भाग्य है। भाग्य हरेक व्यक्ति की संभावना है। संभावना अस्तित्व का गुण है सो अस्तित्व का हरेक जीव भाग्यशाली है। भगवा, भगवान और भाग्य एक ही परम प्रकृति की अभिव्यक्तियां हैं। प्रकृति प्रतिपल भगवा है, प्रतिपल संभावनाशील है। सो हम सब प्रतिपल भाग्यशाली हैं। भगवा भारत की प्रकृति है और प्रकृति भगवान की अभिव्यक्ति है। भगवा भारत का व्यक्तित्व है।

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विवेक ज्वाला का प्रकाशन वर्ष 2002 में तत्कालीन जनपद गाजियाबाद के किसी ग्राम से निकलने वाला पहला मासिक समाचार पत्र था।जो एक टीम के द्वारा शुरू किया गया था।
2011 में विवेक ज्वाला साप्ताहिक प्रकाशित किया जाने लगा।जो आज तक निरंतर प्रकाशित हो रहा है।
 इस बीच विवेक ज्वाला के 5 विशेषांक मैगजीन के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।जिन्हें हमारे पाठकों ने बेहद सराहा है।
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