भारत को स्वस्थ बनाएगा योग
विवेक ज्वाला ब्यूरो:
योग विकारों से मुक्ति मार्ग का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। महायोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण योग के महागुरु हैं। इसकी सार्थकता को दुनिया के कई धर्मों ने स्वीकार किया है। योग सिर्फ व्यायाम का नाम नहीं है। योग के आठ आयामों के जरिए हम मन, मस्तिष्क और शारीरिक विकारों को नियंत्रित कर सकते हैं। आधुनिक जीवन पद्धति में योग विकारों का मुक्तिमार्ग हैं। योग शब्द का दूसरा स्वरूप भारत की
आध्यात्मिक ज्ञान सभ्यता से है। योग शब्द आते ही हमारे मन और मस्तिष्क में वैदिक परंपरा का अनुभव होने लगता है। योग आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिससे हम शरीर, मन और आत्मा को एक साथ केंद्रीय बिंदु में स्थिर करते हैं। योग से हम अपनी तंदुरुस्ती को लाख इनायत बना सकते हैं। निश्चय 21 जून हमारे लिए गौरव का विषय है। भारत की लाखों साल पुरानी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यवस्था पर आधारित यह वैदिक ज्ञान अद्वितीय है। दुनिया ने अब इसकी उपलब्धि को स्वीकार किया है। दुनिया वालों को अपनी यौगिक शक्ति और साधना और उससे होने वाले लाभों से परिचय कराना है। योग भारत के लिए आने वाले दिनों में बड़ा बाजार साबित हो सकता है। यह प्रधानमंत्री मोदी की मेक इन इंडिया पालसी का भी हिस्सा बन सकता है। विश्व के लगभग 200 से अधिक देश भारत की इस वैदिक परंपरा का अनुसरण करेंगे। योग को अब वैश्विक मान्यता मिल गयी है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। योग को वैश्विक मान्यता दिलाने में मोदी सरकार और बाबा रामदेव की भूमिका को नहीं भुलाया जा सकता है क्योंकि उनके मिशन को अधिक बल मिला और योग को वैश्विक मान्यता मिली। योग अपने आप में संपूर्ण जीवन और चिकित्सा पद्धति है। दुनिया में शांति युद्ध से नहीं योग से आएगी।
देश विदेश के करोड़ों लोग योग से सुखी जीवन जी रहे हैं। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 जून यानी विश्व योग दिवस को एक साथ मनाने का अनुरोध किया था। योग से संबंधित युनिवर्सिटी, शोध संस्थान, आयुर्वेद मेडिसिन उद्योग नयी उम्मीदें और आशाएं लेकर आएगा। योग को पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता है। लाखों विदेशी आज भी भारत भूमि में शांति की खोज के लिए आते हैं। प्रकृति की सुंदरता के दर्शन करने यहां आते है जिससे पर्यटन उद्योग को करोड़ों रुपये का मुनाफा होता है। योग को वैश्विक मान्यता मिलने के बाद यह बड़ी जमीन उपलब्ध कराएगा। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम तनाव की जिंदगी दे रहे है। जिंदगी की गति अधिक तेज हो चली है। लोगों के जीने का नजरिया बदल रहा है। काम का अधिक दबाव बढ़ रहा है इससे हाईपरटेंशन और दूसरी बीमारियां फैल रही हैं। तनाव का सबसे बेहतर इलाज योग विज्ञान में ही है। वहीं लोगों में सुंदर दिखने की बढ़ती ललक भी योग और आयुर्वेद विज्ञान को नया आयाम देगी। यह पूरे भारत के गर्व का विषय है। हमारी हजारों साल की वैदिक परंपरा को वैश्विक मंच मिला है। योग का प्रयोग अब दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान के रूप में हो रहा है। योग करें और निरोग रहें। यह हेल्दी वल्र्ड की ओर बढ़ता पहला कदम है। भारत ने स्चच्छ और स्वस्थता की तरफ अपना कदम बढ़ा दिया है।
आज स्थिति यह है कि देश हो या विदेश योग सिखाने के हजारों की संख्या में केंद्र खुल गए हैं। लोगों को योग के जरिए स्वस्थ रहने की नसीहत भी दी जा रही है। साथ ही जो लोग इससे जुड़े हैं उन्हें इसके जरिए अच्छी आमद भी हो रही है। योग शब्द संस्कृत भाषा से आया है। योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है। योग को बढ़ाने के लिए सरकार को कदम बढ़ाने चाहिए। इसे सिर्फ एक दिवस तक सीमित नहीं रखना चाहिए। स्कूलों एवं कालेजों के पाठ्यक्रम में योग शिक्षा का पाठ शामिल किया जाना चाहिए, साथ ही योग के लिए अलग से समय निर्धारित होना चाहिए जिससे योग हमारे संस्कार का माध्यम बने और आने वाली पीढ़ी में यह रचबस जाए। सरकार को इसकी व्यापकता के लिए ठोस रीति और नीति तैयार करनी चाहिए। हालांकि सरकारी स्तर पर भी योग को जमींनी मान्यता दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। यूपी की योगी सरकार ने इतिहास में पहली बार राजभवन में बाबा रामदेव के साथ योग की क्लास लगाई जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद बाबा के साथ योग किया। केंद्र सरकार को राजनीतिक विवाद से बचने के लिए योग को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय की तरह वैदिक योग मंत्रालय की स्थापना करनी चाहिए। गांव-गांव में योग शिक्षकों की नियुक्ति कर योग के प्रचार-प्रसार के लिए काम करना चाहिए। जिस तरह से एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति, होमियो, आयुर्वेद को मान्यता दी गई है, उसी तरह योग विज्ञान पर आधारित चिकित्सा फिजियोथेरिपी को योग के साथ मान्यता मिलनी चाहिए। इसकी वजह से योग विज्ञान की विश्वसनीयता बढ़ेगी। लोग प्रकृति के अधिक करीब रह खुद को स्वस्थ और तंदुरुस्त रख सकते हैं।
‘योगः कर्मसु कौशलम‘
हमारे वैदिक विज्ञान में भी योग का व्यापक समावेश है। योग मानव जीवन के सभी कर्मों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि ‘योगः कर्मसु कौशलम‘ यानी हमारे कर्मों में सर्वश्रेष्ठ योग है। योग यज्ञ है और यज्ञ कर्म है। योग जीवात्मा और परमेश्वर के मिलन का साधन मात्र ही नहीं ईश साधना का भी साध्य है। योगी भगवान कृष्ण ने योग को सर्वोपरि बताया है। उन्होंने कहा है कि ‘योगस्थः कुरु कर्माणि‘ इसका तात्पर्य है कि योग में स्थिर होकर ही सद्चित कर्म संभव है। गीता में तीन प्रकार के योग ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का वर्णन है। सांख्ययोग में 25 तत्वों का उल्लेख है। गीता का छठवां अध्याय योग को समर्पित है लेकिन यह पारिवारिक जीवन जीने वालों के लिए संभव नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता में योग शब्द का बार-बार इस्तेमाल हुआ है जिसमें बु(ि और संन्यास योग के अलावा सांख्य योग, हठ योग, मंत्रयोग भी शामिल है। हठ योग इस परंपरा का अद्वितीय योग है। इसके चलते शरीर की हजारों नाड़ियों को नियंत्रित किया जाता है। मानव शरीर में पिंगला, इड़ा और सुषुम्ना तीन नाड़ियां हैं। योग मन को स्थिर रखता है। यह चित्त और मन को लगाम लगा आप को आध्यात्म सद्चित जीवन की ओर ले जाता है। मन को नियंत्रित करने के लिए योग सबसे उत्तम साधन है। मंत्रयोग के जरिए यह स्थिति प्राप्त की जा सकती है। योग ईश्वर मिलन का साधन मात्र नहीं साध्य भी है। योग के जरिए कुंडलनी जागृत करने की हमारे यहां वैदिक परंपरा रही है जिसके माध्यम से आत्मा और परमात्मा का मिलन संभव है। हम इसके जरिए परकाया प्रवेश भी कर सकते हैं। इस तरह का उल्लेख हमारी वैदिक परंपरा में मिलता है। हमारा योगशास्त्र इस गौरवशाली उपलब्धि से अटा पड़ा है। इसके अलावा हमारे यहां लययोग, राजयोग का भी वर्णन है। चित्त की निरुद्ध अवस्था लययोग में आती है। राजयोग सभी योगों से श्रेष्ठ बताया गया है।