जीएसटी को व्यावहारिक बनाएं जेटली
विवेक ज्वाला ब्यूरो। समय और परिस्थिति के अनुसार जो काम किया जाए, वही तो व्यावहारिकता है। किसी बच्चे को चोट लग जाए तो उसका फौरन इलाज होना चाहिए। इसके लिए घरेलू औषधि से लेकर डाक्टर तक ले जाने की यदि जरूरत है तो पहले यही किया जाना चाहिए। बच्चे को इलाज देने के बाद ही समझाया जाना चाहिए कि बेटा तुम्हे ये चोट कैसे लगी, यदि तुम यह काम न करते तो चोट न लगती आदि-आदि। व्यावहारिक जीवन की ये बातें केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली को समझाने की जरूरत नहीं है। वे अनुभवी नेता है और कानून की भी जानकारी रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें इनदिनों दो-दो महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंप रखी है – वित्त मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय दोनों विभाग वे संभाल रहे हैं लेकिन वित्तमंत्री वे पहले से हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को एक नयी गति दी जाए, इसकी चिंता वे करते रहे हैं। इस चिंता में देश के अंदर छिपे कालेधन को बाहर लाने और देश भर में एक समान कर प्रणाली लागू करने की बात मुख्य रूप से शामिल है। इस समय सबसे ज्यादा चर्चा सामान्य एवं सेवा कर अर्थात जनरल एण्ड सर्विस टैक्स ;जीएसटीद्ध की है।
कई राज्यों में इसका विरोध हुआ और सरकार ने कई संशोधन भी किये हैं। फिर भी इसे और व्यावहारिक बनाने की जरूरत है। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने विभिन्न वर्गों की मांगों को ध्यान में रखते हुए गत 11 जून को 66 वस्तुओं एवं सेवाओं पर टैक्स कम करने का फैसला किया है। वित्तमंत्री के अनुसार ऐसा करके सरकार ने गृहिणियों को राहत दी है। हालांकि ये सभी राजनीति की चिकनी-चुपड़ी बातें होती हैं। परिवार में राहत चाहे बच्चों के नाम पर दी जाए, महिलाओं के नाम पर दी जाए या किसानों का कर्ज माफ किया जाए, वृ(ों को पेंशन मिले, विशेष सुविधा वाला राशन कार्ड ;बीपीएलद्ध मिले – इन सब कार्यों का असर परिवार के बजट पर ही पड़ता है। हमारे भारतीय समाज में अभी उतना पाश्चात्यकरण नहीं हुआ है, जैसा अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि में है और वहां युवा अगर कुछ कमाता है तो उसे खर्च करने का वह अधिकार रखता है अथवा महिला जो कमाती है, उसे वह खर्च कर सकती है। हमारे देश में परिवार का खर्च घर के मुखिया को ही उठाना पड़ता है। वही बच्चों के कपड़े लाता है, उनकी फीस भरता है, महिलाओं के कपड़े और अन्य जरूरत की चीजें उपलब्ध कराता है।
इसलिए भारत की अर्थ व्यवस्था यहां की परम्परा को देखकर ही चलायी जा सकती है। हमारे देश में सबसे बड़ा वर्ग मध्यम वर्ग है। अमीर और सचमुच के गरीब कम हैं। मध्यमवर्गीय परिवार को ही सबसे ज्यादा समस्याएं हैं क्योंकि उनके बच्चे उच्च वर्ग की नकल करना चाहते हैं। इसके चलते कितने ही सामान इसलिए खरीदने पड़ते हैं ताकि बच्चों में हीन भावना न आने पाये। देश की अर्थव्यवस्था को ईमानदारी से टैक्स भी यही वर्ग अदा करता है। इसलिए आर्थिक नीतियां बनाने में इस वर्ग की जरूरतों का ध्यान रखना होगा। जी एस टी को लेकर 11 जून को जब बैठक हुई तो वित्तमंत्री ने 66 वस्तुओं पर टैक्स को कम करने की बात कही है।
इन वस्तुओं में अचार-मुरब्बा और कुछ सौन्दर्य प्रसाधनों पर टैक्स में छूट की धोषणा की गयी है। सरकार के पास 133 वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स में छूट देने की सिफारिश की गयी थी। यह अच्छी बात है कि सरकार ने छोटे कारोबारियों को जीएसटी में रियायत दी है। अब 75 लाख तक सालाना कारोबार करने वाली संस्थाएं स्वतः एकमुश्त कर योजना चुन सकती है। इन्हें क्रमशः एक, दो और पांच फीसदी की दर से टैक्स देने की छूट होगी। इसी क्रम में कपड़ा, हीरा, प्रसंस्करण चमड़ा, आभूषण और छपाई उद्योग में जाॅब वर्क करने वालों पर जीएसटी के तहत कम टैक्स लगेगा। वित्तमंत्री ने गृहिणियों को राहत देते हुए अचार-मुरब्बा के साथ मस्टर्ड साॅस, टाॅपिंग स्प्रेड, इंस्टेंट फूड मिक्स पर भी 6 फीसदी टैक्स कम कर दिया है। पहले जीएसटी के तहत इनपर 18 फीसद टैक्स देना था, अब सिर्फ 12 फीसद टैक्स लगेगा। पूजा पाठ में काम आने वाली अगरबत्ती पर पहले 12 फीसद टैक्स लगाया गया था लेकिन अब उसे कम करके 5 फीसदी कर दिया गया है। यह टैक्स संभवतः अल्पसंख्यकों की भावना को ध्यान में रखकर कम किया गया क्योंकि मजारों और मस्जिदों में सबसे ज्यादा अगर बत्ती जलायी जाती हैं।
हिन्दुओं में तो अगर बत्ती जलाना बहुत लोग उचित ही नहीं मानते क्योंकि पहली बात तो इससे आग लगने का डर रहता है और दूसरी बात यह कि इसमें बांस की तीली का प्रयोग किया जाता है। हिन्दुओं में बांस को जलाने को उचित नहीं मानते और अगर बत्ती की जगह इसी लिए धूप बत्ती ज्यादा उपयोग करते हैं। बांस को पवित्र पेड़ माना जाता है शादी व्याह में मण्डप में बांस ही लगता है। हिन्दुओं के पर्यावरण संरक्षण का भी यह प्रतीक है। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने अगरबत्ती के अलावा डेण्टलबेक्स प्लास्टिक मोती, प्लास्टिक तिरपाल, कंट्रीट पाइप, ट्रैक्टर कलपुर्जे और इंसुलिन के इंजेक्शन पर से टैक्स कम कर दिया है। मधु मेह के रोगी इंसुलिन के इंजेक्शन लगाते हैं। पहले इन पर 12 फीसदी टैक्स निर्धारित किया गया था लेकिन अब सिर्फ पांच फीसदी टैक्स लगेगा। इसी के साथ कंप्यूटर पिं्रटर व स्कूल बैग सस्ते हो जाएंगे। कुछ किताबों और स्कूल बैग पर से जीएसटी दर कम कर दी गयी है। ड्राइंग बुक पर अब कोई टैक्स नहीं देना होगा। कप्यूटर प्रिंटर पर अब 28 की जगह 12 फीसद टैक्स लगेगा, इसी तरह अभ्यास पुस्तिका पर 12 फीसद और स्कूल बैग पर 28 से 18 फीसद जीएसटी लगाने का फैसला हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वित्तमंत्री अरूण जेटली देश में न्यूनतम आय और बैड बैंक गठित करने की बात कह रहे हैं।
हमारे देश में न्यूनतम आय के आधार पर ही गरीब और अमीर तय होते हैं। गरीबों के लिए केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक की कई योजनाएं बनती हैं। हालांकि नकली गरीबों की एक बड़ी कहानी है और उसे फिर कभी हम बताएंगे। फिलहाल मोटे रूप में यही जान लें कि गांवों में जहां कितने ही अमीर बीपीएल कार्ड का फायदा उठा रहे हैं, वही शहरों में कितने ही अमीर गरीबों के नाम पर बनने वाले सस्ते मकानों को लेकर वहां गगन चुंबी इमारत बनाए हुए है। इसी तरह बैंड बैंक के नाम पर उन लोगों की सूची बनायी जाएगी जो बैंक से कर्जा लेकर उसे वापस नहीं कर रहे हैं। इन प्रस्तावों पर क्या कार्यवाही होती है, यह बाद में पता चल सकेगा। फिलहाल अभी तो राज्यों को यही चिंता है कि उनकी कमायी का जरिया वित्तमंत्री छीन रहे हैं। केन्द्र सरकार ने राज्यों को आश्वस्त किया है कि उनको घाटा नहीं होने दिया जाएगा और केन्द्र सरकार उसकी प्रतिपूर्ति करेगी। सरकारें तो अपनी आवाज वित्त मंत्री तक पहुंचा चुकी हैं लेकिन मध्यमवर्ग का व्यक्ति जिसे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलानी है और पाॅष्टिक भोजन भी कराना है उसकी जरूरतो पर ज्यादा टैक्स लगा तो वह अपनी आवाज भी शायद वित्त मंत्री तक न पहुंचा सके। उसकी जरूरतों कोध्यान में रखना होगा।