देउबा ने फिर संभाली नेपाल की सत्ता
विवेक ज्वाला ब्यूरो। नेपाली कांग्रेस पार्टी एक बार पुनः सत्ता में आ गयी है लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (सीपीएन-यूएमएल) के साथ उसको तालमेल बनाए रखना होगा। लगभग 10 महीने पहले ही इन्हीं दोनों पार्टियों ने गठबंधन सरकार बनाने के लिए समझौता किया था। उस समय तय हुआ था कि छह महीने सीपीएन सरकार चलाएगी और इसके बाद कांग्रेस को सत्ता सौंप दी जाएगी। यह अवधि इसी साल अप्रैल में खत्म हो गयी थी। सीपीएन के पुष्प कमल दहल प्रचण्ड प्रधानमंत्री की कुर्सी खाली नहीं करना चाहते थे लेकिन उनकी पार्टी ने दबाव डाला कि हमें समझौते का पालन करना चाहिए। एक और कारण था। नेपाल में स्थानीय निकाय के चुनाव हो रहे हैं। पहला चरण मई में सम्पन्न हुआ तो सीपीएन को जनता ने तीसरे स्थान पर भेज दिया। यही सब देखते हुए पिछले दिनों पुष्प कमल दहल प्रचण्ड ने इस्तीफा दे दिया था और तभी यह लगभग तय माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शेर बहादुर देउबा ही प्रधानमंत्री बनेंगे। गत 6 जून को नेपाल के सांसदों ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया। वह देश के चैथी बार प्रधानमंत्री बने हैं। शेर बहादुर देउबा इस प्रकार देश के 40वें प्रधानमंत्री बने हैं। उनकी उम्र 70 वर्ष की हो चुकी है और उनके पास प्रचुर राजनीतिक अनुभव भी हैं। श्री देउबा भारत सरकार के पक्षधर नेता माने जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें प्रधानमंत्री का चैथी बार पद भार संभालने पर बधाई संदेश भेजते हुए नेपाल के समृ(ि की कामना की है। नेपाल में प्रजातंत्र और राजतंत्र की लड़ाई लगभग दो दशक से चल रही है। वहां के राज परिवार को जनता भगवान की तरह मानती थी। सबसे पहले माओवादी नेता ही राजतंत्र का विरोध करने निकले लेकिन उनका विरोध लोकतांत्रिक नहीं था। नेपाल में छापेमार यु( जैसी स्थिति आ गयी। राज परिवार में भी बगावत शुरू हो गयी थी। सन् 2002 में राज परिवार के ही महत्वाकांक्षी सदस्य राजा ज्ञानेन्द्र सिंह ने तख्ता पलट कर सत्ता छीन ली थी लेकिन 2005 में भ्रष्टाचार के आरोप में राजा ज्ञानेन्द्र को जेल भेज दिया गया। नेपाल में प्रजातंत्र की नींव 1995 में ही पड़ गयी थी और तभी पहली बार शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाया गया था। वह 1997 तक पहली बार प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद राजनीतिक उथल-पुथल चलती रही और 2001 में जब चुनाव हुए तो श्री देउबा को ही पुनः प्रधानमंत्री बनाया गया।
राजा ज्ञानेन्द्र ने 2002 में नेपाल को फिर से राजतंत्र में लाने का प्रयास किया था लेकिन जनता के विरोध के चलते उनका प्रयास सफल नहीं हो पाया और 2004 में श्री देउबा फिर से प्रधानमंत्री बन गये। वह 2005 तक ही प्रधानमंत्री रह पाये। इसी बीच 2005 में राजा ज्ञानेन्द्र को उन्होंने ही भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भिजवाया। श्री देउबा ने प्रधानमंत्री रहते हुए 1996 में भारत के साथ ऐतिहासिक महाकाली नदी समझौता किया था। इस संधि के तहत महाकाली नदी के पानी को लेकर समझौता हुआ था। अभी दो साल पहले ही नेपाल ने अपना नया संविधान बनाया था। हालांकि संविधान बनाने में सीपीएन की भूमिका ज्यादा रही और मधेशी समुदाय ने इसीलिए विरोध भी किया लेकिन संविधान संशोधन में शेर बहादुर देउबा की भी मुख्य भूमिका रही थी। अब उनकी सरकार में मधेशी समुदाय की पार्टियां भी शामिल होने की उम्मीद जतायी जा रही है जिससे नेपाल में शांति बहाली की उम्मीद की जा सकती है। श्री देउबा ने ही 20 साल के बाद स्थानीय चुनाव कराने के लिए सभी राजनीतिक दलांे को राजी किया है।
नेपाल के प्रधानमंत्री के लिए कमल दहल प्रचण्ड के इस्तीफे के बाद किसी अन्य पार्टी ने उम्मीदवार भी नहीं उतारा था। सरकार में शामिल पार्टियांें के अंदर ही कुछ लोग विरोध कर रहे थे और सीपीएन के कुछ लोग भी प्रचण्ड का साथ देने की बात कह रहे थे। इस प्रकार नेपाल की संसद के 558 सदस्यों में से 338 ने श्री देउबा को प्रधानमंत्री चुना है। उनके खिलाफ 170 लोग थे। श्री देउबा को प्रधानमंत्री बनने के लिए सिर्फ 297 मतों की जरूरत थी। सत्तारूढ़ कई दल हैं और श्री देउबा को सभी के बीच तालमेल बनाना है। विशेष रूप से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को संभालना होगा। ऐसा माना जाता है कि श्री देउबा अपने मंत्रिमण्डल को अभी बहुत ज्यादा बड़ा नहीं करेंगे। गठबंधन में कुछ मधेशी समुदाय की पार्टियों को भी शामिल करेंगे ताकि संविधान संशोधन को लेकर मधेशी समुदाय में जो असंतोष है उसे दूर किया जा सके। प्रधानमंत्री के रूप में श्री देउबा ने अपनी विदेश नीति का खुलासा किया है। उन्होंने कहा कि वह भारत और चीन के साथ मिलकर काम करेंगे। श्री देउबा कहते हैं कि एक प्रधानमंत्री के रूप में दोनों देशों के साथ अन्तर राष्ट्रीय संबंधों को आगे ले जाने का प्रयास करेंगे। देश में सभी पार्टियों की भावना को ध्यान में रखेंगे।