अब नहीं रहे पर्यावरणविद् व केन्द्रीय मंत्री अनिल माधव दवे
विवेक ज्वाला ब्यूरो। नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यावरण अनिल माधव दवे का शुक्रवार सुबह देहांत हो गया है. अनिल दवे के देहांत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया. उनके निधन के बाद उनकी अंतिम इच्छा सामने आई है जिसमें यह लिखा हुआ है कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में कोई स्मारक ना बनें. अनिल माधव ने यह इच्छा 23 जुलाई 2012 को ही लिख दी थी. उनकी इच्छाएं यकीनन किसी को भी भाव-विभोर कर देनेवाली है. अपनी सहजता और सादगी के लिये मशहूर रहे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे की इच्छा थी कि उनकी याद में स्मारक बनाने के बजाय पौधे लगाकर इन्हें बड़ा किया जाये और नदी-तालाबों को बचाया जाये। दवे के भतीजे निखिल दवे ने ‘वह ;अनिल माधव दवेद्ध हमसे कहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई स्मारक न बनाया जाये। अगर कोई व्यक्ति उनकी स्मृति को चिरस्थायी रखना चाहता है, तो वह पौधे लगाकर इन्हें सींचते हुए पेड़ में तब्दील करे और नदी-तालाबों को संरक्षित करे.’उन्होंने बताया कि दवे की अंतिम इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में नर्मदा और तवा नदी के संगमस्थल बांद्राभान में किया जायेगा. इस स्थान पर वह अपने अलाभकारी संगठन ‘नर्मदा समग्र’ के बैनर तले ‘अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव’ आयोजित करते थे. उन्हें इस जगह से खासा लगाव था। इस बीच, सोशल मीडिया पर एक दस्तावेज की प्रति वायरल हो रही है जिसे दवे की कथित आखिरी इच्छा और वसीयत से जुड़ा बताया जा रहा है.
इस दस्तावेज पर 23 जुलाई 2012 का दिनांक अंकित है. इस दस्तावेज पर उनका अंतिम संस्कार बांद्राभान में वैदिक रीति से किये जाने, उनकी अंत्येष्टि में किसी तरह का आडम्बर न किये जाने, उनका स्मारक न बनाये जाने, उनकी याद में कोई प्रतियोगिता और पुरस्कार न शुरू किये जाने सरीखी बातों का जिक्र है. दवे के भतीजे निखिल ने कहा कि वह इस दस्तावेज की प्रामाणिकता की पुष्टि तुरंत नहीं कर सकते लेकिन इस दस्तावेज में कही गयी अधिकतर बातें दिवंगत केंद्रीय मंत्री की पर्यावरणहितैषी सोच और सादगी से भरी रही उनकी जीवन यात्रा से मेल खाती हैं.
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने मृत्यु से पांच साल पहले ही अपनी वसीयत में अपना अंतिम संस्कार होशंगाबाद जिले के बान्द्राभान में नर्मदा नदी के तट पर करने तथा उनकी स्मृति में वृक्षारोपण एवं जल संरक्षण किये जाने की इच्छा व्यक्त की थी. उन्होंने लिखा था कि संभव हो तो उनका अंतिम संस्कार बांद्राभान में नदी महोत्सव वाले स्थान पर किया जाये. उन्होंने यह भी लिखा कि उनका अंतिम संस्कार केवल वैदिक रीति से किया जाये तथा कोई भी आडम्बर या दिखावा नहीं हो.अनिल माधव दवे ने अपनी अंतिम इच्छा में ये बातें लिखी- संभव हो तो मेरा अंतिम संस्कार बाद्राभान में नदी महोत्सव वाले स्थान पर किया जाये.- उत्तर किया के रूप में केवल वैदिक कर्म ही हो, किसी भी प्रकार का दिखावा, आडंबर ना हो.- मेरी स्मृति में कोई भी स्मारक, प्रतियोगिता, पुरस्कार, प्रतिमा ना बनाई जाए.- जो मेरी स्मृति में कुछ करना चाहते हैं वे ड्डप्या वृक्षों को बोनें व उन्हें संरक्षित कर बड़ा करने का कार्य करें, तो उन्हें खुशी होगी. उन्होंने लिखा कि ऐसा करते हुए भी मेरे नाम का इस्तेमाल ना करें. पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का आज (गुरुवार) सुबह दिल्ली के एम्स में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. दवे की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया है. अनिल माधव दवे 61 साल के थे। पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया- मेरे दोस्त और एक बहुत ही सम्मानित सहयोगी पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के अचानक निधन से बिल्कुल चैंक गया हूं. मध्य प्रदेश के उज्जैन जिला स्थित बड़नगर में हुआ था जन्म अनिल माधव दवे का जन्म 6 जुलाई 1956 को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिला स्थित बड़नगर में हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा गुजरात में संपन्न हुई. इसके बाद इंदौर से उन्होंने रूरल डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट के साथ काॅमर्स में मास्टर्स किया. वह काॅलेज के दिनों में छात्र नेता रहे. पीएम मोदी ने अपनी टीम में जिन्हें जगह दी, उनमें अनिल माधव दवे भी शामिल थे. दवे ने ‘नर्मदा समग्र’ नामक आर्गेनाइजेशन की शुरुआत की थी. दवे वर्ष 2004 में नर्मदा की पहली हवाई परिक्रमा भी कर चुके हैं. केंद्र में उन्होंने 5 जुलाई 2016 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला था.
दिल्ली के एम्स में गुरुवार को दिल का दौरा पड़ने से दवे का निधन हो गया. बताया जा रहा है कि अनिल दवे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे.मध्यप्रदेश से दो बार राज्यसभा सांसद रहे मध्यप्रदेश से दो बार राज्यसभा सांसद रहे दवे को भाजपा में त्रुटिहीन सांगठनिक कौशल वाले व्यक्ति के तौर पर जाना जाता था. वह लंबे समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे. वह वर्ष 2003 में तब सुखिर्यों में आए जब उनकी रणनीति उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की हार का सबब बनी. इसके बाद मुख्यमंत्री बनी उमा भारती ने दवे को अपना सलाहकार बनाया. एनसीसी एयर विंग कैडेट के तौर पर उन्होंने उड़ान संबंधी शुरूआती प्रशिक्षण लिया एनसीसी एयर विंग कैडेट के तौर पर उन्होंने उड़ान संबंधी शुरूआती प्रशिक्षण लिया और इसमें जीवनभर का जुनून तलाश लिया. वह निजी पायलट लाइसेंस धारक थे और एक बार उन्होंने नर्मदा के तट के आसपास 18 घंटे तक सेसना विमान उड़ाया था. राज्यसभा सांसद के तौर पर वह ‘ग्लोबल वार्मिंग एंड क्लाइमेट चेंज’ के मुद्दे पर बने संसदीय मंच के सदस्य रहे.साहित्य में गहरी रूचि थी इंदौर के गुजराती काॅलेज से काॅमर्स में परास्नातक करने वाले दवे की साहित्य में गहरी रूचि थी और उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. दवे का जन्म मध्यप्रदेश के उज्जैन जिला स्थित बारनगर में छह जुलाई 1956 को हुआ था. उनकी माता का नाम पुष्पा और पिता का नाम माधव दवे था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विरासत उन्हें अपने दादा दादासाहेब दवे से मिली थी. उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने आरएसएस का प्रचारक बनने का फैसला किया. वह वर्षों तक संघ के समूहों के बीच बड़े हुए. वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें भाजपा में शामिल किया गया.दवे पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार थे दवे पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार थे और वर्ष 2003, 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव के दौरान और वर्ष 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख रहे. उन्हें बूथ स्तरीय प्रबंधन एवं नियोजन के लिए जाना जाता था. दवे को वर्ष 2009 में राज्यसभा का सदस्य चुना गया. वह विभिन्न समितियों में शामिल रहे और भ्रष्टाचार रोकथाम ;संशोधनद्ध विधेयक 2013 पर बनी प्रवर समिति के अध्यक्ष भी रहे. दवे ने भोपाल में वैश्विक हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया था. उन्होंने सिंहस्थ कुंभ मेला के अवसर पर उज्जैन में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था.