इंतकाम
धीरे धीरे उठता धूआं ,
आगाज नहीं हो चिंगारी का !
सिसक रहीं हैं आंख सभी की ,
शैलाब न लादैं बर्बादी का !
शैतानीं हाथौं ने फैंका ,
बीमारी का जाल छुपाकर !
गुस्से मैं हो भी सकता है ,
खाक नतीजा चालाकी का !
ऊपर कोई राख नहीं हैं ,
अन्दर शोले भड़क रहे हैं !
मजबूरी से हाथ बधे हैं ,
लोग दिलौं को जकड़ रहे हैं !
लेकिन गर्म हवा का मंजर ,
धीरे धीरे सुलग रहा है !
हैं आवाजैं गुर्राहट की ,
लावा थोड़ा निकल रहा है !
लपटौं का अन्देशा लगता ,
आग बरसने का खतरा है !
बदले को बारूद भरा है ,
गर्म हवा का हर कतरा है !
आंसू का सैलाब न जाने ,
कलकी क्या तश्वीर बना दे !
निकट बहुत तूफांन खड़ा है ,
कब दुनियां की नींद उड़ादे !
आनेवाला वक्त अभी तो ,
रुकेहुए आंसू पीता है !
कल का निंर्णय आज नहीं है ,
देखें जहर कहां जीता है !
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रचनां : जे .पी .रावत !