आइये जानते है महिला नागा साधु के कपडे ना पहनने का रहस्य

इस दुनिया में बहुत तरह के लोग पाए जाते है कुछ लोग मतलबी कुछ लालची कुछ अच्छे कुछ बुरे कोई दानी तो कोई दुसरो का बुरा चाहने वाला पर आप सब को यह भी पता होगा की हर इंसान जो भी करता है सिर्फ अपने परिवार के लिए करता है अपने परिवार को खुश देखने के लिए करता है चाहे वो उसके लिए कुछ भी करे और कुछ लोगो को अपने देखा होगा की वो इस दुनिया दारी की मोह माया को छोड़ के बस अपना ध्यान सिर्फ भगवान् भक्ति व साधना में लगा लेते है और उसके बाद उनके जीवन में किसी और के लिए कोई जगह नहीं रह जाती वो आप को बस तपस्या और भक्ति में लीन कर लेते है और अपने परिवार की मोह माया से दूर सबसे दूर बस अपनी ही दुनिया में खुश रहते है जिन्हे हम साधू कहते है आपको बता दे की साधू भी कई तरह के होते है और आपको यह भी बता दे की साधू सिर्फ पुरुष ही नहीं होते बल्कि महिलाये भी होती है और आपने देखा होगा की पुरुष में नागा साधु भी होते है तो आज आपको यह बात बता दे की सिर्फ पुरुष में ही नागा साधु नहीं होते बल्कि महिलाये भी नागा साधू होती है | बस फर्क इतना हैं की पुरुष साधू हमे अक्सर दिख जाते है लेकिन लेकिन महिलाये नागा साधु हमे नहीं दिखती क्योकि इनको एक दायरे में रखा जाता है | किसी भी महिला को नागा साधु बनने से पहले उसे 6 से 12 साल के लिए बहुत मुश्किल ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. इसके बाद गुरु इस बात से संतुष्ट हो जाए कि वह महिला ब्रह्मचर्य का पालन कर सकती है तो उसे दीक्षा दी जाती है. महिला को भी नागा साधु बनने से पहले स्वयं अपना पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है.
महिला नागा साधू को बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करना पड़ता है और साधू बनने के बहुत साल पहले से ही इनको कठोर तपस्या जैसी करनी पड़ती है जो की इनके गुरु द्वारा इन्हे बताया जाता है ये महिला वही करती है और कम से कम 10 से 12 साल तक अपने आप को साधू बनने के लिए लगा लेती है जब इन समय में यह सारे नियम सीख जाती है और सारे मोह माया व अपने परिवार से दूर हो जाती है जब इनके गुरु इनको दीक्षा दे देते है और फिर यह भक्ति को अपने आप आप में लीं कर लेती है यह नागा होने के बाद भी भगवा वस्त्र धारण करती है और बहुत ही साधारण भोजन ग्रहण करती है और शिव की भक्ति में लीन रहती है और आपको यह बात भी पता नहीं होगी की महिलाये साधू का जीवन पुरुष साधू की तरह ही होता है और मरने के बाद भी इनका अंतिम संस्कार नहीं किया किया जाता बल्कि इनके शव को किसी नदी या समुन्द्र में बहा दिया जाता है