हिन्दू धर्म की बात करना गुनाह क्यों?
विवेक ज्वाला ब्यूरो।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गत दिनों बिहार गये थे। दरभंगा के राज मैदान में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी समारोह मनाया जाना था, उसी में योगी को संबोधित करना था। उन्होंने वहां कार्यक्रम के अनुरूप पंडित दीनदयाल उपाध्याय की प्रासंगिकता के बारे में बताया। इसके साथ ही राजनीति पर भी चुटकी ली और कहा कि बिहार में श्री नीतीश कुमार, जिन्हें सुशासन कुमार भी कहा जाता है और श्री लालू प्रसाद यादव, जिन्हें बिहार में जंगलराज का जनक बताया जाता है, इन दोनों का साथ कैसे चल रहा है। योगी आदित्यनाथ ने कवि रहीमदास जी का दोहा भी सुनाया कि कह रहीम कैसे निभै बेर-केर का संग, वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग। इन दो बातों के अलावा श्री योगी ने हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की बात भी कही। जिस पर वहां के नेताओं ने हंगामा खड़ा कर रखा है। योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं। वह राजनीति में हैं तो क्या हुआ, योगियों की तरह ही उनका खान-पान और रहन-सहन है। नाथ सम्प्रदाय की मान्यताओं का वह बहुत आदर करते हैं, इसलिए हिन्दू धर्म की बात न कहकर क्या वह कुरान और बाईबल का बखान करें, तभी उन्हें राजनीति में रहने का हक होगा?श्री योगी ने हिन्दू धर्म की कट्टरता के बारे में भी नहीं कहा था, बल्कि यह बताने का प्रयास किया कि हम अपने धर्म और धार्मिक प्रतीकों का उल्लेख करने से हिचकते क्यों है?उन्होंने कहा कि जब कोई विदेशी राजनायिक हमारे देश में आता है अथवा हमारे देश का राजनायिक विदेश जाता है तो वह ताजमहल की प्रतिकृति ;मोमेण्टोद्ध भेंट करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक अच्छी शुरूआत की और विदेशी राजनायिकों को श्रीमद्भगवत गीता की प्रति भेंट कर भारत का गौरव बढ़ाया। इसमें श्री योगी ने कौन सी साम्प्रदायिकता की बात कह दी, जिसका विरोध किया जा रहा है?
यह अजीब परम्परा चल पड़ी है कि भारत में हिन्दू धर्म के बारे में कोई बात करो, हिन्दू धर्म ग्रंथों के बारे में कुछ अच्छे उपदेश दो और भारतीय जीवन शैलो के बारे में कुछ कह दंे, तो उसे बैकवर्ड और साम्प्रदायिक जैसे विश्लेषणों से नवाजा जाता है। उसे संविधान का हवाला दिया जाता है, जिसमें धर्मनिरपेक्ष शब्द बाद में जोड़ा गया। संविधान बनाने वाले विद्वानों ने पहले इस शब्द को संविधान में कोई महत्व ही नहीं दिया था। उन्हें तो इस देश और उसमंे रहने वालों की चिंता थी। इसलिए ‘हम भारत के लोग …. रहकर संविधान की प्रस्तावना लिखी गयी। संविधान में सभी धर्मो की स्वतंत्रता की बात कही गयी है तो हिन्दू धर्म की ही मुख्य धारा के प्रति इतने प्रतिबंध क्यों हैं?रामचरित मानस और भगवत् गीता का उल्लेख करने पर इतना शोर क्यों मचाया जाता है?गीता तो वैसे भी सामाजिक गं्रथ माना जाता है। हमारी जीवन प(ति का यह गं्रथ पथ प्रदर्शक है और भारत ही नहीं, विदेशों में भी श्रीमद् भगवत गीता को बहुत ही उपयोगी ग्रंथ माना जाता है। इसी प्रकार रामायण और विशेष रूप से गोस्वामी तुलसीदास कृत राम चरित मानस को जन सामान्य ने जो मान्यता दे रखी है, उससे कौन इनकार कर सकता है। श्री योगी ने उसी बिहार में भगवत गीता और रामायण की बात उठाई जहां के लोगांे ने सैकड़ों साल पहले मारीशस में गिरमिटिया मजदूर बनकर श्री रामचरित मानस के सहारे ही हिन्दुत्व और भारतीयता को जीवित रखा था। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी आदि में बसे कितने ही भारतीय आज भी अपने घर में रामायण और गीता रखते हैं, फिर विदेशी राजनयिकों को ताजमहल और दूसरी इमारतों की मूर्तियां देने की जगह यदि रामचरित मानस और भगवतगीता की प्रतियां भेंट की जाएं तो इसमें कौन सा संविधान का उल्लंघन हो जाएगा?योगी आदित्यनाथ ने यही बात दरभंगा के राजमैदान में कह दी तो जद;यूद्ध और राजद के नेताओं ने आसमान सिर पर उठा लिया है।
राजनीति से हटकर भी देखें तो हिन्दू समाज के लोग अपने को हिन्दू कहते हुए पता नहीं क्यों झिझक जाते है?इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव तो है ही साथ ही हिन्दू धर्म के बारे में उनकी कोई जानकारी नहीं है और जो जानकारी है, उसे भ्रमित कर दिया गया। मसलन कहा गया है कि हमारे धर्म मं 33 कोटि देवी-देवता हैं। कोटि का मतलब करोड़ भी होता है और प्रकार भी। सच्चाई यह है कि देवी देवताओं के 33 प्रकार हैं और पत्थरों- वनस्पतियों मंे भी हम देवी-देवता का भाव रखते हैं जो कि पर्यावरण संतुलन का सबसे अच्छा उपाय है। हमें इन सब बातों को अपनी नयी पीढ़ी को समझानी होगी। अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने अपने घर में कहा कि चलो हरिद्वार घूम आएं। मेरी छोटी बेटी ने फौरन जवाब दिया कि ‘अरे, पापा क्या आप धार्मिक स्थलों पर ही चलने की बात करते हैं, किसी हिल एरिया पर चलिए। मैं अपनी बेटी की भावना को एकदम कुचलना भी नहीं चाहता था, इसलिए उसे समझाया कि हां, गर्मी में घूमने के लिए हिल एरिया अच्छे रहते हैं लेकिन हरिद्वार भी हिल एरिया ही है और दूसरी बात यह कि हम लोग अक्सर पूजा-पाठ में गंगाजल का प्रयोग करते हैं। गंगाजल खत्म हो गया है। पिछली बार हम लोग ऋषिकेश से ही ढेर सारा गंगा जल लाए थे, इसलिए वहीं चलना ठीक रहेगा। यह सुनकर मेरी बेटी हरिद्वार चलने के लिए तैयार हो गयी।
हमारे पूर्वजों, )षियों-मुनियों ने बहुत सोच-समझ कर ही ग्रंथों की रचना कीं। वेद, उपनिषद, अरण्यक, पुराण, रामायण और गीता, इन सभी में सुखमय जीवन का सार छिपा हुआ है। इन गं्रथों को हम स्वयं पढ़े और दूसरों को भी पढ़ने की प्रेरणा दें तो बहुत सुन्दर वातावरण का सृजन हो सकता है। दुनिया भर में आज जो हिंसा और अन्याय का वातावरण दिख रहा है, उसे इन ग्रंथों के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। ताकत ने हमें यह पाठ पढ़ाया है