भारत में गरीबी कैसे दूर हो
भारत में गरीबी एक बड़ी समस्या है। गरीबी हटाने के लिए देश में अथक प्रयास किये गये। गरीबी तो क्या हटी किन्तु गरीब जरूर हट गया। गरीबी हटाओ नारा अभी भी वास्तविकता में नहीं बदल पाया है। गरीबी के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो लगेगा कि गरीबी के खिलाफ हमंे अभी लंबी जंग लड़नी है। लगातार बढ़ रही आबादी ने गरीबी हटाने के सभी प्रयासों पर पानी फेर रखा है। भारत में गरीबी एक बड़ी समस्या है। गरीबी हटाने के लिए देश में अथक प्रयास किये गये। गरीबी तो क्या हटी किन्तु गरीब जरूर हट गया। गरीबी हटाओ नारा अभी भी वास्तविकता में नहीं बदल पाया है। गरीबी के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो लगेगा कि गरीबी के खिलाफ हमंे अभी लंबी जंग लड़नी है। लगातार बढ़ रही आबादी ने गरीबी हटाने के सभी प्रयासों पर पानी फेर रखा है।
एक सर्वे के अनुसार भारत की एक चैथाई से अधिक की आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रही है। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सर्वे के अनुसार दुनिया में स्वास्थ्य, शिक्षा व जीवन स्तर को मानक माना जाये तो भारत एक गरीब देश है। गरीबी रेखा के लिए प्रति व्यक्ति माहवार आय निर्धारित की गयी है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में 41.8 प्रतिशत व शहरी क्षेत्र में 25.7 प्रतिशत गरीब हैं। गरीबी एक विश्वव्यापी समस्या है। 6 लाख बच्चे प्रतिवर्ष भूख से मर रहे हैं। दुनिया विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति कर रही है लेकिन गरीबी की समस्या हल नहीं हो पायी। दुनिया में भूखे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2050 तक भूखे लोगों की समस्या 2 करोड़ बढ़ जाने की आशंका प्रकट की गयी है। गरीब देशों मंे लाखों लोगांे को भरपेट भोजन नहीं मिलता है। खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी व खाद्यान्नों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी की वजह से खाद्यान्नों का संकट पैदा हो गया है।
इस कारण लाखों करोड़ों लोगांे को भरपेट भोजन नहीं मिलता। विश्व के कई देशों में खाद्यान्नों के भण्डारों की कमी है। इस कारण लाखों करोड़ों लोगों को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिलता। भूखमरी हिंसा व अशांति को जन्म देती है। इसलिए विश्व शांति के लिए भुखमरी पर काबू पाना बेहद जरूरी है। खाद्यान्नों का उत्पादन भारत में लगातार बढ़ रहा है। बढ़ती आबादी के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृ(ि बेअसर साबित हो रही है। भारत सरकार के आर्थिक सर्वे के अनुसार वर्ष 1990 से वर्ष 2007 तक खाद्यान्नों के उत्पादन की वृ(ि दर 1.2 प्रतिशत रही। लेकिन जनसंख्या औसतन 1.9 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इस कारण खाद्यान्नों का संकट पैदा हो रहा है, जो क्रम अभी भी जारी है। गरीबांे को सार्वजनिक वितरण व्यवस्था द्वारा खाद्यान्न उपलब्ध कराने की व्यवस्था भारत में है लेकिन यह व्यवस्था देश में ढुलमुल रूप से चल रही है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कोटे का अनाज व चीनी का काफी हिस्सा ब्लैक मार्केट में चला जाता है। बीपीएल ;गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लोगोंद्ध को अपने राशन का हिस्सा नहीं मिलता। भ्रष्ट व्यवस्था में गरीब खुले बाजार में खाद्यान्न खरीदने को विवश होता है। योजना को आधार से जोड़ने के बाद भी व्यवस्था में परिवर्तन की अधिक संभावना नहीं है।
केन्द्र सरकार गरीबों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए खाद्यान्नों पर सब्सिडी देती है। देश में दोषपूर्ण राशन व्यवस्था की वजह से सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लग रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को प्रभावी व दोषमुक्त बनाने के लिए पात्र व अपात्र लाभार्थियों की पहचान करनी होगी। इस बात के प्रयास करने होंगे कि बीपीएल श्रमिक व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगांे को इस प्रणाली का सही लाभ पहुंचे। खाद्यान्नों की खरीद, भण्डारण व मूल्यों के बारे में दीर्घकालीन नीति बनाकर सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली को और चुस्त दुरुस्त बना सकती है। विडम्बना है कि बीपीएल का राशन दुकानदार खा जाते हैं। कई दुकानदार तौल मारने में माहिर होते हैं। देश में हर व्यक्ति को सर ढकने के लिए मकान, तन ढकने के लिए कपड़े व पेट भरने के लिए रोटी चाहिए। कई श्रमिक परिवारों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती है। कई श्रमिकों को सही मेहनताना नहीं मिलता ताकि वे रोटी, कपड़ा व मकान की जरूरतें पूरी कर सकें। शराब के नशे ने कई श्रमिक परिवारों को भुखमरी के ठौर पर खड़ा कर दिया है। यह जरूरी है कि श्रमिक परिवारों को घर-परिवार चलाने के लिए पैसा मिले। कमाने वाले सदस्य की गलत आदतों से परिवार नहीं चलता। यहां शराबी मजदूर मस्त, परिवार पस्त कहानी चरितार्थ होती है।
सरकार ऐसे श्रमिक परिवारों के कमाऊ सदस्य को पैसा दिला सकती है। श्रमिकों को मनरेगा योजना की जानकारी नहीं होती है। कई योजना में शामिल होने के इच्छुक नहीं होते। खाद्यान्नों से भण्डार भरे रहें। इसके लिए किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य दिलाया जाना जरूरी है। किसान दलालों के शोषण का शिकार न हों। उनके लिए विकसित तकनीक, उन्नत बीजों, सिंचाई व फसलों के वितरण की उचित व्यवस्था करनी होगी। खाद्यान्नों की भण्डारण क्षमता पर्याप्त हो ताकि खाद्यान्न खुले में बर्बाद न हों। देश में खाद्यान्न की भण्डारण क्षमता पर्याप्त है लेकिन सरकार की एजेंसियों की खरीद कम होती है।