घोड़ी, बारात और दलित |
सत्ता में आने के बाद सभी नेता अपने आप को दलितों का मसीहा मानते हैं .और सरकार को पिछड़ों के प्रति समर्पित. लेकिन वास्तविकता कुछ और है . आज भी दलित दूल्हा अपनी बारात घोड़ी पर नहीं निकाल पाता. क्यों प्रशासन नतमस्तक होता है सवर्णों के आगे ? क्यों दलित दूल्हे को घोड़ी पर बारात निकालने पर मनाई होती है ? क्या दलितों के प्रति प्रेम सिर्फ जबानी जमा खर्च है ? इन सवालों के जवाब जानने के लिए देखते रहिए खबर के पीछे की खबर धोबी घाट पर अशोक वानखड़े के साथ.