अफसरों को लेकर मोदी की अच्छी पहल
विवेक ज्वाला ब्यूरो।
देश में शासकीय अधिकारियों की कार्यशैली पर कई बार ऐसे सवाल उठते रहे हैं, जिससे उनकी कर्तव्यनिष्ठा पर संदेह पैदा होता रहा है। वास्तव में वर्तमान में कई शासकीय अधिकारियों की कार्यशैली ऐसी होती जा रही है, जो जनता से सरोकार नहीं रखती। ऐसे सरकारी अधिकारी कर्तव्यहीन ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि जो सरकारी योजनाएं आम जनता की भलाई के लिए बनाई जाती हैं, वे अधिकारी और कर्मचारियों की निष्क्रियता के चलते मूर्त रूप नहीं ले पातीं। देश का यह सबसे बड़ा सच ही कहा जाएगा कि सरकारी योजना को साकार करने के लिए शासकीय सेवकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। सरकारी योजनाओं का असफल होना भी कहीं न कहीं इन सरकारी
अधिकारियों की निष्क्रियता है।
केन्द्र की मोदी सरकार ने जिस प्रकार से देश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दी है, उससे देश में एक विश्वास तो पैदा हुआ है कि भ्रष्टाचार को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए पहल करना आवश्यक भी था, क्योंकि कांगे्रस के शासनकाल में देश की जनता भ्रष्टाचार से बहुत दुखी होती जा रही थी। देश की गाढ़ी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता ही जा रहा था, कहीं से भी रुकने की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। उसके बाद देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी पर विश्वास किया और केन्द्र सरकार ने जनविश्वास के आधार पर सरकार का संचालन करके जनधारणा को परिवर्तित करने का अभिनव सूत्रपात किया है। ऐसी सरकार को पाकर देश की जनता प्रसन्न दिखाई दे रही है। कहते हैं कि जब सत्ता में बैठे लोग ईमानदार होंगे, तभी ईमानदार व्यवस्था लागू हो सकती है। आज सरकार में ईमानदार लोग हैं और वह जैसे हैं, वैसा ही देश को बनाना चाहते हैं। सरकार में बैठे मंत्रियों के स्तर पर भले ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा हो, लेकिन प्रशासन स्तर पर कहीं न कहीं भ्रष्टाचार किए जाने की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ रही थी जिसके कारण जनता अभी भी परेशान थी। जिस अधिकारी के कार्य से जनता परेशान होती है, वास्तव में उस
अधिकारी के काम की समीक्षा किया जाना बहुत जरूरी है। अगर वह समीक्षा करने के बाद अनफिट दिखाई देता है, तो उसकी सेवाएं समाप्त करने जैसा कदम भी सरकार को उठाना चाहिए।
वर्तमान में जिस प्रकार की शिक्षा पद्धति देश में दिखाई दे रही है, उसमें सबसे ज्यादा अंक हासिल करने वाले शिक्षार्थी भी संदेह के घेरे में आने लगे हैं। नकल माफिया के दबाव के चलते छात्र कागजी योग्यता तो प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन उनको उन विषयों का भी ज्ञान नहीं होता, जिसकी उसने परीक्षा दी है। इसी प्रकार परीक्षा और भर्ती घोटाले भी सुने जाते हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि जो व्यक्ति भ्रष्टाचार के रूप में रिश्वत देकर नौकरी पाने का प्रयास करता है, वह देश का कितना भला कर सकता है। रिश्वत लेना और देना, दोनों ही गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं लेकिन इससे अयोग्य व्यक्तियों का चयन भी हो जाता है, ऐसे अयोग्य व्यक्ति को कुर्सी मिल जाने के कारणों से ही कर्तव्यहीनता बढ़ती जा रही है। ऐसे व्यक्ति अपने काम के प्रति न्याय भी नहीं कर पाते, फिर जनता की भलाई कैसे कर सकते हैं। देश की जो जनता कर्मचारियों को वेतन देती है, उनको कष्ट देना कहां तक उचित है। यह भी कर्तव्यहीनता की श्रेणी में आता है।
शासकीय कार्यालयों के कामकाज से कई नागरिक परेशान हुए हैं। कई लोगों ने सरकारी अधिकारियों व बाबुओं की शिकायत भी की होगी, लेकिन सरकार में बैठे राजनेता कितनी प्रभावी कार्यवाही करते हैं, यह भी सबको पता है। किसी का सगा अगर मंत्री बन गया तो उस शासकीय सेवक को तो कोई काम भी नहीं करना पड़ता। शासकीय कार्यालयों में कई फाइलें धूल खा रही हैं। उनका नंबर कब आएगा, कोई नहीं बता सकता। यह सब काम न करने के कारण ही हो रहा है। यही हमारे देश में अभी तक होता रहा है लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। अब देश में केन्द्र सरकार के मंसूबे स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं। यह सोच तभी धरती पर उतर कर सामने आएगी, जब सरकार के मंसूबे के मुताबिक प्रशासन भी अपने कार्यों को अंजाम दे। फिलहाल मोदी सरकार ने इस हेतु कदम बढ़ा दिए हैं। शासकीय सेवकों के काम काज की समीक्षा की तैयारियां प्रारंभ भी हो र्गइं हैं। अगर यह समीक्षा सही तरीके से की गई तो परिणाम भी अच्छा दिखाई देगा।